अधिकार क्या है?
अधिकार किसी व्यक्ति का अपने लोगों, अपने समाज और अपनी सरकार से दावा है। हम सभी खुशी से, बिना डर-भय के और अपमानजनक व्यवहार से बतकर जीना चाहते हैं। इसके लिए हम दुसरों से ऐसे व्यवहार कि अपेक्षा करते हैं जिससे हमें कोई नुकसान न हो, कोई कष्ट न हो। इसी प्रकार हमारे व्यवहार से भी किसी को कोई नुसकान और कष्ट नहीं होना चाहिए।
इसलिए अधिकार तभी संभव है जब आपका अपने बारे में किया हुआ दावा दुसरों पर भी समान रूप से लागु हो। आप ऐसे अधिकार नहीं रख सकते जो दुसरों को कष्ट दे या नुकसान पहुंचाए। जैसे आप इस तरह के अधिकार नहीं रख सकते कि क्रिकेट खेलते समय दुसरों के घर के शिसे टुट जाए और आपके अधिकार को कुछ न हो।
हम जो दावे करते हैं वे तार्किक होने चाहिए, वे ऐसे होने चाहिए कि हर किसी समान मात्रा में उन्हे दे पाना संभव हो।इस प्रकार हमें कोई भी अधिकार इस बाध्यता के साथ मिलता है कि हम दुसरों के अधिकार का आदर करें। हम कुछ दावे कर दें बस इतने भर से वह हमारा अधिकार नही हो जाता हैं। इसे पुरे समाज से स्विकृति मिलनी चाहिए जिसमें हम रहते हैं। हर समाज अपने आचरण को व्यवस्थित करने के लिए कुच्छ कायदे- कानुन बनाता है और वे कायदे-कानुन हमें बतातें हैं कि क्या सही है, क्या गलत है। समाज जिस कानुन को सही मानता है, सबके अधिकार लायक मानता है वही, हमारे भी अधिकार होते हैं।
इसलिए समय और स्थान के हिसाब से अधिकारों कि अवधारण भी बदलती रहती है दो सौ साल पहले अगर कोई कहता कि औरतों को भी वोट देने का अधिकार होना ताहिए तो उसे अजीब माना जाता जिस तरह आज सऊदी अरब में माना जाता है। क्योंकि वहां पर औरतों को वोट देने का अधिकार नहीं हैं। जब समाज में मान्य कायदों को लिखत-पढ़त में ला दिया जाए तो उन्हे असली कानुन कि ताकत मिल जाती हैं।
हमें अधिकारों कि क्या जरुरत हैं?
लोकतंत्र कि स्थापना के लिए, अधिकारों का होना जरूरी हैं। लोकतंत्र में हर व्यक्ति को वोट देने और चुनाव लड़कर प्रतिनिधि चुने जाने का अधिकार है।
लोकतांत्रिक चुनाव हों इसके लिए लोगों को अपने विचारों को व्यक्त करने का, राजनेतिक पार्टी बनाने का अधिकार होना जरूरी हैं।
लोकतंत्र में अधिकार बहुसंख्यकों के दमन से अल्पसंख्यकों कि रक्षा करते हैं।
ये इस बात कि व्यवस्था करते हैं कि बहुसंख्यक किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में मनमानी न करें।
अधिकार लोकतांत्रिक स्थिति के बिगड़ जाने पर एक प्रकार कि गांरटी कि तरह काम करते हैं।अगर कुछ नागरिक दुसरों के अधिकारों को हड़पना चाहें तो स्थिति बिगड़ सकती हैं। ऐसी स्थिति में सरकार को अधिकारों कि रक्षा करनी चाहिए।
अधिकारों को सरकार से भी ऊचां रखना चाहिए, क्योंकि कुछ चुनी हुई सरकार भी लोगों के अधिकारों पर हमला कर देते हैं।
भारतीय संविधान में अधिकार-
विश्व के अनेक लोकतांत्रिक देशों कि तरह भारत के लोगों के अधिकार भी संवेधानिक रूप से संविधान में दर्ज हैं। जो कि हमारे जीवन में एक नींव के पत्थर कि तरह काम करते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति कि गरिमा का उल्लघंन न हो इसका पुरा ध्यान रखते हैं। भारतीय संविधान में कुल 6 मौलिक अधिकारों को सामिल किया गया है जो भारत के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त है़।समानता का अधिकार-
लेकिन किसी भी लोकतंत्र सफलता के लिए यह एक बुनियाद हैं। यानी कि कोई भी व्यक्ति कानुन से ऊपर नहीं हैं कानुन किसी राजनेता, सरकारी अधिकारी या आम आदमी सबके लिए समान रूप से लागु होता है और कोई भी केवल पद, पैसे या किसी और चीज से इनमें अतंर नहीं कर सकता, अगर करता है तो कानुन के रूप में वह एक गुनाह हैं।
प्रधानमंत्री हो या किसी खेत में काम करने वाला एक किसान, गरिब हो या अमीर कानुन सबके ऊपर समान रूप से लागु होता हैं। और कोई भी व्यक्ति जन्म स्थान,जाती, धर्म, लीगं, समुदाय,रगं, पैसे, और उचं- नीच के आधार पर सरकार द्वारा प्रदत किसी पद के लिए दावा नहीं कर सकता है।
और इन्ही के आधार पर किसी व्यक्ति को किसी सार्वजनिक स्थान जैसे- मंदिर, मज्जीद, अस्पताल, होटल, स्कुल- काॅलेज, दुकान, सिनेमाघर तथा किसी भी सार्वजनीक स्थान पर जाने से नहीं रोका जा सकता है।
और इन्ही के आधार पर किसी व्यक्ति को किसी तालाब, कुएं, नदी, झिल घाट, सड़क और भवनों के इस्तेमाल या निर्माण से नहीं रोका जा सकता है। ये चीजें भले ही हमें आसान लगती है लेकिन देश में आज भी जाती और धर्म के आधार पर इन चीजों से लोगों को वंचीत किया जाता हैं। जैसे-
हाल ही 2022 में जब दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीश शिसोदिया और आम आदमी पार्टी के ही एक नैता राघव चडा को उतर-प्रदेश के CM के आदेशों के आधार पर इन्हे उतर-प्रदेश के स्कुल- कॉलेज देखने जाने से रोका गया था जो कि सिधा संविधान के अधिकारों का उल्लघंन करना था।
अब आप सौच सकते हैं कि जब इतने बड़े नैताओं को रोका जा सकता है तो एक आम आदमी को तो बड़ी आसानी से ये लोग रोक सकते हैं।
सरकारी नौकरी पर भी यही नियम लागु होते है़ं तथा इनके आधार पर किसी भी नागरिक को रोजगार के लिए अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता है
भारत सरकार द्वारा सरकारी नौकरीयों में अनुसुचित जाती, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण दिया जाता है लेकिन यह समानता के अधिकार का उल्लघंन नहीं, क्योंकि समानता का अधिकार कहता है कि सबको समान रूप से जीविका के साधन प्राप्त करने का अधिकार हैं। तथा गरिब और पिच्छड़ी जाती व जनजातियों इससे वंचित न रह जाएं इसलिए आरक्षण कि व्यवस्था कि गई हैं।
और यह अधिकार केवल सरकारी नौकरियों तक शिमित नहीं है, बल्कि समाज में व्याप्त छुआछुत तथा भेदभावों से भी इसी प्रकार रक्षा करता है तथा सरकार भी कहती है कि छुआ-छुत और भेदभाव को समाप्त किया जाए, क्योंकि यह समाज के लिए उसी प्रकार हानिकारक है जिस प्रकार शरिर के लिए जहर हानिकारक होता हैं।
स्वतंत्रता का अधिकार-
स्वतंत्रता का मतलब बाधाओं का न होना है यानी कि हमारे मामले मे किसी प्रकार का दखल अंदाजी न होना-न सरकार का और न ही किसी व्यक्ति का। हम समाज में रहना चाहते हैं लेकिन स्वतंत्रता के साथ। हम मन चाहे ढंग से काम करना चाहते हैं, कोई हमे ऐसा आदेश न दे कि इसे ऐसे करो। हम मन चाहि स्कुल और कॉलेज में पढ़ना चाहते हैं। इसलिए भारतीय संविधान तथा संविधान निर्माता ड़ॉ. बी. आर. अम्बेड़कर ( जय भीम, बाबा साहेब ड़ॉ. बी. आर. अम्बेड़कर ) ने प्रत्येक व्यक्ति को कई तरह कि स्वतंत्रताएं दी हैं।
अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता
शांतिपुर्ण ढंग से जमा होने कि स्वतंत्रता
संगठन और संघ बनाने कि स्वतंत्रता
देश में कहीं भी आने जाने कि स्वतंत्रता
देश के किसी भी भाग में रहने-बसने कि स्वतंत्रता
और कोईभी काम करने, धंधा चुनने या पैसा कमाने कि स्वतंत्रता
याद रखिए कि हर व्यक्ति को ये स्वतंत्रताएं प्राप्त है इसका मतलब यह है कि आपकी स्वतंत्रता से राष्ट्र और जनता कि स्वतंत्रता का हनन न हो। यानी कि आप और हमे स्वतंत्रता तो है लेकिन संविधान और कानुन के दायरे में। इससे आप वह सब करने लिए आजाद हैं जिससे देश, संविधान और लोगों को नुकसान न हो।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता-
अभिव्यक्ति की आजादी हमारे लोकतंत्र कि बुनियादी विशेषता है।अभिव्यक्ति कि आजादी में बोलने, लिखने और कला के विभिन्न रूपों में स्वंय को व्यक्त करना शामिल हैं। दुसरों से स्वतंत्र रूप से विचार-विमर्श और संवाद करके ही हमारे विचारों और व्यक्तित्व का विकास होता है। आपकी राय दुसरों से अलग हो सकती है संभव है कि कई सौ लोग एक ही तरह से सोचते हों, तब भी आपको अपनी अलग राय रखने और व्यक्त करने की आजादी होती है।
आप सरकार कि किसी निती से या किसी संगठन की गतिविधियों से असहमति रख सकते हैं। आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या अपने माॅं- बाप से बातचित करके सरकार की नितियों की आलोचना करने को स्वतंत्र हैं। आप अपने विचारों को पर्चे छापकर या Social Media के माध्यम से भी व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन आप इस अधिकार का प्रयोग करके लोगों को किसी व्यक्ति या समाज के प्रति भड़का नहीं सकते। आप किसी सरकार या संगठन के खिलाफ लोगों को बगावत करने के लिए उकसा नहीं सकते।
शांतिपूर्ण ढ़गं से जमा होने कि स्वतंत्रता
नागरिकों को किसी मुद्धे पर जमा होने, बैठक करने, प्रदर्शन करने, जुलूस निकालने का अधिकार है। वे यह सब किसी समस्या पर चर्चा करने, विचारों का आदान-प्रदान करने, किसी उध्देश्य के लिए जनमत तैयार करने या किसी राजनेतिक पार्टी के लिए वोट मांगने के लिए भी कर सकते हैं। लेकिन ये बैठकें शांतिपूर्ण हो तथा सार्वजनिक अव्यवस्था या समाज में अशांति न फैले।
संगठन या सघं बनाने कि स्वतंत्रता-
अगर आपको लगता है कि आप समाज के लिए कोई अछा कार्य कर सकते हैं और उसे करने के लिए आपको किसी संगठन को बनाने जरुरत है और आप उसे बनाना चाहते हैं। तो उसे बनाने की स्वतंत्रा भी हमारा संविधान हमें देता है। जैसे- किसी कारखाने के मजदुर अपने हितों और मागों के लिए मजदुर संघ बना सकते हैं। किसी शहर या स्थान पर प्रदुषण से मुक्ति तथा स्वच्छता के लिए भी संघ बना सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि यह सब कानुनों के खिलाफ न हो तथा इससे समाज में किसी तरह का कोई भेदभाव या अन्य भ्रष्टाचार देश में न फैलें।
देश में कहीं पर भी आने जाने कि स्वतंत्रता-
प्रत्येक व्यक्ति को देश के किसी भी स्थान पर जाने तथा वहां पर बस जाने का अधिकार है हम भारत के किसी भी हिस्से में रह और बस सकते हैं। जैसे राजस्थान का कोई व्यक्ति असम में तथा पंजाब का कोई व्यक्ति कोलकता में रह और बस सकता है। संभव है कि उसने इन शहरो को कभी न देखा हो तथा न ही इनका इन शहरों से कोई संपर्क रहा हो, लेकिन भारत के नागरिक हहोने के कारण इन्हे इसका अधिकार प्राप्त है।
कोई भी काम-धंधा चुनने या करने का अधिकार-
भारत के प्रत्येक व्यक्ति को भारत के किसी भी स्थान पर कोई भी काम-धंधा या नौकरी करने का अधिकार है तथा सरकार या कोई भी नैता तथा अमीर व्यक्ति आम नागरिकों को इससे वंचित नहीं कर सकता है। लेकिन काम भी ऐसा होना चाहिए जिससे किसी देश कि एकता अखण्डता और कानुन तथा संविधान के नियमों को ठेस न पहुंचाता हो।
शोषण के विरूध अधिकार-
स्वतंत्रता और समानता का अधिकार मिल जाने पर स्वभाविक है कि नागरिकों को यह भी अधिकार हो की कोई उनका शोषण न कर सके। इसलिए हमारे संविधान निर्माता ड़ाॅ. बी.आर. अम्बेड़कर ने इसे भी संविधान में शामिल करने का निर्णय लिया ताकि कमज़ोर और पिछड़े लोगें का काोई शोषण न कर सके। संविधान ने खास तौर पर तीन तरह कि बुराईयों का जिक्र किया है तथा इन्हे गैर-कानुनि घोषित किया है।
अवैध व्यापार का निषेध-
आम तौर पर इसका शिकार महिलाएं होती हैं। जिनका अनैतिक कामों के लिए शेषण किया जाता है।
बेगार लेना निषेध-
हमारा संविधान किसी भी तरह से बेगार लेने को गैर-कानुनी घोषित करता है बेगार प्रथा में गरिब लोगों को अपने मालिक के लिए मुफ्त में काम करना होता है और जब यही काम आजीवन करना पड़ जाता है तो इसे बंधुआ मजदुरी कहते हैं।
बाल मजदुरी पर निषेध-
संविधान किसी भी तरह कि बाल मजदुरी को निषेध करता है तथा 14 वर्ष से कम आयु के बचौं को किसी कारखाने या दुकान या कहीं पर भी काम करने या करवाने को गैर- कानुनी घोषित करता है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार-
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है तथा विशव के अन्य देशों की तरह भारत में भी अलग-अलग धर्मों के मानने वाले लेग रहते हैं। कुछ लोग किसी भी धर्म को नही मानते हैं। धर्मनिरपेक्षता इस सोच पर आधारित है कि शासन का काम व्यक्तियों के बीच के काम को देखता है, व्यक्ति और ईश्वर के बीच के मामलों को नहीं।
धर्मनिरपेक्ष शासन वह है जहाँ किसी भी धर्म को अधिकारिक धर्म की मान्यता नहीं होती। भारतीय धर्मनिरपेक्षता में सभी धर्मों के प्रति शासन का समान भाव रखना शामिल हैं। धर्म के मामले में शासन को सभी धर्मों से उदासीन और निरपेक्ष होना चाहिए। हर किसी को अपना धर्म मानने, उस पर आचरण करने और उसका प्रचार करने का अधिकार है।
हर धर्म समूह या पंथ को अपने धार्मिक कामकाज का प्रबंधन करने कि आजादी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप धर्म के प्रचार प्रसार के नाम पर लोगों को झांसा देकर उनसे पैसे एठने लग जाओ या उनका धर्म परिवर्तन करवाने लग जाएं। अगर आप ऐसा करते हैं तो यह कानुन के नियमों के खिलाफ हेगा तथा ऐसा करने पर कानुनी कार्यवाही होगी और ऐसा करने वाले व्यक्ति को शक्त सजा और जुरमाना होगा।
इस अधिकार के कारण व्यक्ति अपने धर्म को मानने तथा उसके प्रचार के लिए आजाद होता है लेकिन उसे इस बात कि आजादी नहीं होती है कि वह दुसरे धर्म व उनसे सबंधित किसी इतिहास कि बातों के जरिए उस धर्म कि आलोचना करे।
भारत के प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म को मानने तथा उसके नियमों को मानने की स्वतंत्रता होती है, लेकिन संविधान के दायरे में रहकर। इसलिए किसी भी व्यक्ति को दुसरे धर्म के बारे में किसी भी तरह की आलोचना करने का अधिकार नहीं है और ना ही उसके खिलाफ लोगों को भड़काने का अधिकार है। अगर कोई भी व्यक्ति ऐसा करता है चाहे वह देश का प्रधानमंत्री हो या किसी राज्य का मुख्यमंत्री, संविधान उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं देता है।
अगर आपको किसी ओर टोपिक पर जानकारी चाहिए तो कृपया कमेंट करें
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