तारागढ दुर्ग
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अजमेर दुर्ग का निर्माण किसने करवाया
इस दुर्ग की अभेधता के बारे में बिशप हैबर ने लिखा है ' यह भव्य दुर्ग पर्वत शिखर पर स्थित है जो दो मील के दायरे में फैला है। उबड़ खाबड़ व अनियमित आकार के कारण इस दुर्ग में 1200 से अधिक सैनिक नहीं रह सकते है। लेकिन शास्त्रीय रूप में इसकी उपयोगिता है
इसे अजयमेरू व गढबीठली आदि नामों से भी जाना जाता है।
जिस पहाड़ी पर यह बना उसकी समुद्र तल से उचाई 2855 फीट है यह दुर्ग आज भी सुदृढ़ है और पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है जहां पर हजारों कि तादाद में लोग घुमने के लिए आते हैं। इस दुर्ग का निर्माण 1113ई में हुआ और तभी से इस पर आक्रमण होते रहे है।
महमूद गजनवी ने तारागढ दुर्ग को हथियाने के लिए इसै घेरा लेकिन स्वयं घायल हो जाने के कारण घेरा उठा लेना पड़ा। तराईन के द्वितीय युद्ध के बाद मुहम्मद गौरी ने इस पर अधिकार कर लिया। पृथ्वीराज के छोटे भाई हरिराज ने इसे जीता लेकिन कुछ समय बाद ही कुतुबूदीन एबक ने इसे छिन लिया।
महाराणा कुभा के काल में राव रणमल ने इसे जीता तथा कुछ समय के लिए यह माड़ु के सुल्तान के कब्जे में भी रहा। पृथ्वीराज ने यहाँ के मुस्लिम गवर्नर को मारकर इसे फिर से जीत लिया, 1533 मे गुजरात के बहादुर शाह ने इस दुर्ग पर कब्जा कर लिया और बाद में इसे मारवाड़ के राजा मालदेव ने जीत लिया।
अजमेर के पर्यटक स्थलों में तारागढ दुर्ग बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है और हजारों कि संख्या में पर्यटक यहाँ पर घूमने के लिए आते हैं।